अन्धायुग और नारी--भाग(१५)

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उस रात तुलसीलता जीजी का मंदिर के भव्य प्राँगण में नृत्य था और उस रात जब नृत्य करके वो अपनी कोठरी में पहुँची तो मेरे चाचा सुजान सिंह तुलसीलता की कोठरी के पास पहुँचे और किवाड़ों पर लगी साँकल खड़काई,साँकल के खड़काने की आवाज़ सुनकर तुलसीलता जीजी कोठरी के भीतर से ही बोली.... "कौन...कौन है"? "मैं हूँ ठाकुर सुजान सिंह", चाचा कोठरी के बाहर से ही बोलें... "ओह...ठाकुर साहब! जरा ठहरिए,मैं अभी किवाड़ खोलती हूँ",तुलसीलता भीतर से बोली... और फिर कुछ वक्त के बाद तुलसीलता ने किवाड़ खोलते हुए चाचा से कहा.... "माँफ कीजिए ठाकुर साहब!,किवाड़ खोलने में जरा देर