सुबह मैं जागा तो हवेली में कौतूहल सा मचा था,क्योंकि दादाजी ने अपने लठैतों को रात को भेजा होगा तुलसीलता के पास लेकिन उन्हें वहाँ तुलसीलता नहीं मिली और दादाजी इस बात से बहुत नाराज़ थे,उनकी नाराजगी इस बात पर नहीं थी कि तुलसीलता उन्हें नहीं मिली,उनकी नाराजगी की वजह कुछ और ही थी और वें नाराज होकर हवेली के आँगन में चहलकदमी कर रहे थे,शायद उन्हें किसी के आने का बेसब्री से इन्तज़ार था और तभी एक लठैत उनके पास आकर बोला.... "सरकार! छोटे मालिक आ चुके हैं" "उसे फौरन मेरे पास भेजो",दादा जी बोलें.... मतलब दादाजी चाचा जी