अन्धायुग और नारी--भाग(१०)

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मैं और चंपा चुपचाप उसी टीले के पास बैठकर उस बाँसुरी वाले की बाँसुरी सुनने लगे,बहुत ही मीठी बाँसुरी बजा रहा था वो,मैं तो जैसे उसकी बाँसुरी में खो सी गई,वो आँखें बंद करके बाँसुरी बजा रहा था और मैं उसे एकटक निहारे जा रही थी, सच में उसका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था,कुछ ही देर में उसने बाँसुरी बजाना बंद किया और जैसे ही अपनी आँखें खोली तो हम दोनों को अपने नजदीक बैठा देख सकपका गया और उसने हमसे पूछा... "कौन हो तुम दोनों और यहाँ क्या कर रही हो",? तब चंपा बोली... "हम तुम्हारी बाँसुरी सुनकर यहाँ