लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 79 मंगलवार 14/02/2017 डॉक्यू-नॉवेल ‘दृश्यम अदृश्यम’ प्रकरण अंतिम चरण में है। इसके वास्तविक पात्रो की जीवन यात्रा निरंतर बढ़ती रहेगी। कथा-प्रवाह को घटनास्पद बनाने के लिए पात्रों की मन-वेदनाएं भला कितना उठाव दे सकती हैं? भले ही ये कथा पूरी हो गई हो, फिर भी वे वेदनाएं समाप्त नहीं हुई हैं। उनके मनजगत पर एक दृष्टिपात करने की मंशा से तीनों मुख्य पात्रों से की गई थोड़ी-सी बातचीत के अंशः “गाडीत फिरण्याचा संकेतच हट्ट सुर्यकांत कधी ही विसरणार नाही.”(संकेत की गाड़ी में घूमने की जिद सूर्यकान्त कभी-भी भूल नहीं सकता) मासूम बेटे के अपने जीवन से