लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 70 मंगलवार, 20/11/2001 सूर्यकान्त भांडेपाटील जो चाहते थे वैसा ही कुछ मिलता-जुलता हुआ। पता नहीं यह भविष्य की घटना का संकेत था या फिर महज संयोग। सूर्यकान्त को पूरा भरोसा था कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है। जो मन ने कहा, वही किया। अच्छे-अच्छों को पानी पिला दे, लोगों के छक्के छुड़ा दे, ऐसी मारक और कातिल अदाओं वाली को वह आज अपने साथ घर ले जा रहा था। उसकी कोशिश यही थी कि गांव वालों की उस पर नजर न पड़ पाए। इसीलिए वह रास्ते में न तो किसी की ‘राम-राम’ का जवाब