फादर्स डे - 69

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लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 69 24/07/2000 फिर वही काला सोमवार। सोमवार के भय से आज सूर्यकान्त की आंख जल्दी खुल गई थी। अपने जागने की किसी को भी भनक न देकर वह सोफे पर चुपचाप आंख बंद करके बैठा रहा। दिमाग में सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था...लहू...लहू...लहू.. अथक प्रयासों के बाद लहू को पकड़कर पुलिस के सुपुर्द किया गया था...और वह दिनदहाड़े पुलिस की आंखों में धूल झोंककर जेल से फरार हो गया। सुबह सभी अखबारों की हेडलाइन का मुख्य विषय लहू ही था। “पोलिसांच्या हातावर तुरी देऊन क्रूरकर्मा लहु रामचंद्र ढेकणेचे पलायन.”(पुलिस की आंखों में धूल झोंककर