लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 62 रविवार 16/07/2000 सूर्यकान्त एकदम प्रैक्टिकल आदमी निकला। वास्तविकता का ध्यान रखकर आगे बढ़ना सीख गया था। उसने अब तक बहुत दुनिया देख ली थी। उसकी गांठ में दुनियादारी का बड़ा अनुभव था। संकेत को गायब होकर अब काफी महीने गुजर गए थे। वह सुरक्षित वापस लौटेगा, इस पर अब उसे संदेह होने लगा था। लेकिन एक पिता का मन चीत्कार कर-कर के कहता था, ‘मेरे संकेत को कुछ नहीं होने वाला, वो जरूर मिलेगा।’ फिर भी, पुत्रप्रेम के वश में होकर अब कोई भी गलती न करते हुए लहू ढेकणे को जाल में फंसाना जरूरी