लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 60 मंगलवार 11/07/2000 सूर्यकान्त को चंद्रकान्त की जुबानी जो कुछ भी सुनने को मिला उस पर उसका भरोसा ही नहीं बैठ रहा था। किस्सा हूबहू संकेत की ही तरह था। अपहरण के बाद फिरौती, पुलिस की मौजूदगी, विफलता, लाचार पिता, वेदना, बेचैनी और आखिर में नतीजा शून्य। एकदम अपने जैसा ही। अंधेरी रात, जगह और समय की परवाह न करते हुए सूर्यकान्त ने बुद्धिमानी से काम करने का तय किया। खुद को मिली जानकारी के आधार पर सूर्यकान्त ने जांच-पड़ताल करना शुरू किया। एकदम सहजता से, प्रेम से सवाल पूछने लगा। ‘आपके घर में कौन-कौन हैं?,