लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 46 सोमवार 07/02/2000 सूर्योदय में अभी वक्त था। दड़बों में बंद आलसी मुर्गों ने बांग देना अभी शुरू ही किया था। सूर्यकान्त की पूरी रात जाग कर गुजरी थी। बीच-बीच में वह एकाध झपकी ले-लेता था। रात-भर जागने के कारण उसकी आंखें लाल-लाल हो गई थीं। अलसुबह फटाफट तैयारी करने के बाद सूर्यकान्त और रफीक़ ने एमएच 11-5653 में मीटिंग की। एक्सीलेटर पर पैर दबाया। साई विहार में हरेक प्रार्थना कर रहा था, ‘हे ईश्वर, आज अमजद शेख मिल जाए। संकेत सुरक्षित घर वापस आ जाए।’ इस बदमाश अपपाधी के पीछे डेढ़ महीने से भागदौड़ चल