लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 39 बुधवार -15/12/1999 विचार...विचार...विचार...विचारों का चक्र सूर्यकान्त का पीछा छोड़ ही नहीं रहा था। किसी इल्ली के शरीर में जिस तरह कांटे चिपके रहते हैं उसी तरह विचार भी सूर्यकान्त से चिपक कर रहते थे। एक विचार, एक सवाल का हल ढूंढ़ते साथ ही दूसरा विचार, दूसरा सवाल सामने आकर खड़ा हो जाता था। संकेत का अपहरण, उस सुबह उसके साथ बिताए हुए कुछ क्षण...प्रतिभा का दुःख...हताश-निराश सौरभ...पिता विष्णु की मौन लाचारी..आई जनाबाई की विवशता...खुद के भीतर संकेत के न होने के कारण विरह का गहरा जख्म...और उसपर रह-रह जम रही यादों की परतें। स्वयं के