लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 38 रात के गहरे अंधकार में जब सोमवार, मंगलवार में बदल चुका, तब सूर्यकान्त और मर्डेकर के दोपहिया ने पुणे में प्रवेश किया। आगे लंबा रास्ता और अपने गंतव्य के बारे में पूरी तरह से परिचित सूर्यकान्त सहजता से आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। पुणे के धनकवडी में पहुंच कर वह मकानों पर लिखे नाम पढ़ने लगा। चार-पांच मकानों के बाद ही उसने एक नाम पढ़ा- ‘भाऊ पारांडे’। पढ़ते ही उसने अपनी गाड़ी को ब्रेक मारा। इस कर्कश आवाज से दूर सो रहे कुत्ते हड़बड़ाकर जाग गए और भौंकने लगे। सूर्यकान्त ने भाऊ पारांडे