लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 34 शनिवार, 11/12/1999 सूर्यकान्त अपनी पत्नी प्रतिभा, अपना प्यार और उसके बच्चे की मां को किसी मेटरनिटी अस्पताल में ले जाने के लिए सातारा की सड़कों पर उड़ान भर रहा था। जीप को चलाते हुए उसने अपने गुस्से पर काबू रखने की बहुत कोशिश की। उसे मालूम था कि उसे प्रतिभा का ख्याल रखना है, साथ ही होने वाले बच्चे का भी। आज, नीरा के किनारे पर चलते हुए उसके सामने 8 अक्तूबर 1996 की शाम जीवंत हो उठी। ‘सड़क पर कितना भारी ट्रैफिक था। प्रतिभा की हालत नाजुक थी और मुझे उसकी सुरक्षित डिलेवरी के