लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 33 शनिवार, 11/12/1999 यह मानव का स्वभाव ही है कि वह किसी की दोस्ती या निकटता को सहजता से नहीं ले पाता, पचा भी नहीं पाता। शिरवळ की गॉसिप गैंग भी सूर्यकान्त और रफीक़ की दोस्ती के बारे में तरह-तरह की बातें बनाने लगा। “रफीक़ संकेत के अपहरण से पहले तो सूर्यकान्त के इतने निकट नहीं था।” “हां, वे एकदूसरे को जानते-पहचानते ही तो थे।” “सड़क पर आमने-सामने पड़ जाएं तो वे एकदूसरे को देख कर मुस्कुराते भी नहीं थे।” “जब से संकेत गायब हुआ, रफीक़ लगातार सूर्यकान्त के साथ बना हुआ है।” “इसमें कोई गड़बड़