फादर्स डे - 21

  • 2k
  • 867

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 21 सोमवार, 06/12/1999 सूर्यकान्त ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर दौड़ाई। समय भाग रहा था। वह असहाय महसूस कर रहा था। वह इस बात का अफसोस मना रहा था कि संकेत के साथ उसके बिताए हुए सुनहरे दिन अब कभी वापस नहीं आएंगे। उसने महसूस किया कि वक्त पिछले सोमवार पर ही ठहरा हुआ है, अफसोस, उसकी सांसें ठहरी हुई नहीं हैं। आज ठीक एक सप्ताह हो गया, संकेत को लापता हुए। सुबह के समय प्रतिभा रसोई में व्यस्त तो थी, पर उसका दिमाग एकदम खाली था। जिस समय वह नल के नीचे चावल