लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 10 मंगलवार, 30/11/1999 मंगलवार के इन ठंडे, अंधेरे घंटों में लहू देखणे अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि वह कैसे इस पुलिस चौकी के घिसे हुए फर्नीचर को पॉलिश करेगा। नींद से वंचित, लाल आंखें लिए हुए लहू अपने ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि जांच के लिए जब उसका नाम पुकारा गया तो उसे सुनाई ही नहीं पड़ा। एक सिपाही ने उसे झकझोरा। लहू उठ खड़ा हुआ। उससे कोई सवाल पूछा जाता उससे पहले ही उसने हाथ जोड़कर सिपाही से कहा कि वह निर्दोष है। “काय नाय केलं( मैंने कुछ नहीं किया है).