लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 7 सोमवार, त २९/११/१९९९ सूर्य अस्त के बाद शिरवल गाँव बिलकुल समझदार लड़के जैसा हो जाता है धमाल बन्ध, मस्ती बन्ध, अग्नांकित बच्चे के जैसे हाथ पैर धोकर, शाम का खाना खतम कर के अध्ययन, पढ़ाई या गप्पे लड़ाने बैठ जाना । कुछ बेकार गाँव के बहूत ज्ञात अंबेमाता मंदिर पासके चौराहे एकठ्ठा होते । बीड़ी फूँक ना या तंबखू मसलकर हाथों से चूना जटकना । उसके बाद गाँव के सरपंच से लेकर वडा प्रधान को क्या करना चाहिए उसकी फिलसूफ़ी सुरू हो जाती थी । भले ही घर मे एक रुपए की कमाई ना हो