हास्य का तड़का - 4

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# परफेक्ट मैच (विडंबना) #जो कभी कानून को अपने पैरों तले रौंदा करते थे जो कभी कानून को अपनी जेब में लेकर घुमा करते थे जो कभी कानून को अपनी जायदाद समझते थे वो आज उसी कानून को उसके फर्ज याद दिला रहे हैं वो आज उसी कानून से इंसाफ की भीख मांग रहे हैं वो आज उसी कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं दूसरों के जीवन को मक्खी मच्छर समझने वाले आज खुद के जीवन की भीख मांग रहे हैं जो कभी कानून को पांव की जूती समझ कर परफेक्ट मैच बताते थे वो