लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 4 सोमवार, 29/11/1999 बेचैन परिंदा शिरवळ शवदाहगृह की ओर उड़ चला। कहने की बात नहीं कि उस जगह पर नीरव शांति पसरी हुई थी; अक्षरशः श्मशान शांति। परिंदा यहां की नकारात्मक ऊर्जा से परेशान होकर आराम की तलाश में कुछ और दूर उड़ गया। उसने शवदाहगृह की अस्थाई दीवार का सहारा लिया, नल की टोंटी और बिजली के खंबे का आसरा लेने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ। अंततः, वह अंतिम संस्कार स्थान के नजदीक बनी लोहे की पटरी पर जा पहुंचा। अधजले शव से उसे कुछ ताप तो महसूस हुआ, लेकिन गरमाहट न मिली। वह