लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 3 सोमवार, 29/11/1999 सूर्यकान्त बाथरूम में घुसा, उसने बालों में शैम्पू तो लगाया लेकिन रगड़न भूल गया। उसके विचारों की रेल चल पड़ी थी, ‘अंततः मेरे कठोर परिश्रम के वृक्ष पर फल लगने की बारी आ गई है। संकेत के जन्म के बाद मेरे करियर में जबर्दस्त उछाल आया है। दुःख तो इस बात का है कि मेरी कोई भी उपलब्धि प्रतिभा के मौन को तोड़ने में सफल नहीं रही है। मैं उसके व्यवहार को समझ ही नहीं पा रहा हूं। हमारे विवाह को कई साल बीत गए, हमारे बीच प्रेम का बंधन भी है, बावजूद