लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 2 सोमवार, 29/11/1999 भले ही, शिरवळवासियों का ध्यान इस ओर गया न हो, लेकिन साई विहार को छोड़कर सारा कस्बा किसी विषाद की गिरफ्त में था। हमेशा की तरह घड़ी ने सुबह के सात बजाये और सूर्यकान्त की दिनचर्या रोज़ की ही तरह शुरू हो चुकी थी। वह तैयार होकर सोफे पर बैठा था, अपनी सुबह की चाय के इंतजार में। उसने शिरवळ के दैनिक अखबार ऐक्य को पढ़ना तो शुरू किया, पर न जाने क्यों उसका ध्यान नहीं लग रहा था। उसने अखबार किनारे रख दिया और किन्हीं ख्यालों में खो गया। उसने एक के