मुस्कुराहट का कर्ज़

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"अरे आगे जाओ बाबा।"कार से उतरते हुए आनंद के कानों में आवाज आई तो उसकी निगाहें उस बूढ़े व्यक्ति की तरफ उठ गई जो किसी से खाना खिला देने को कह रहा था। आनंद की स्मृतियों में उस बूढ़े को देखकर अचानक एक चेहरा कौंध गया। "आप सुलेमान चाचा हो न ?" आनंद ने उसके पास जाकर पूछा।"हाँ...ह..हाँ...आप कौन साहब...." अचकचा कर उसने पीछे मुड़कर देखा। इतनी इज़्ज़त की शायद उसे कभी आदत नहीं रही थी। "मैं आनंद। बहुत साल पहले एक बीमार बच्चे को आप बंदर-बंदरिया का खेल दिखाने आते थे क्योंकि उसे थोड़ी खुशी मिलती थी और वह