शीर्षक – गलतफ़हमी बनी सीख बात उन दिनों की है जब मैं पाँचवी कक्षा में पढ़ती थी | मेरे गाँव का प्राथमिक विद्यालय नदी के पार था | नदी पर एक छोटा – सा पुल बना हुआ था जिसे पार करके हम अपनी मंजिल तक पहुँचते थे | जब मन करता तो विद्यालय से आते समय हम कभी – कभी उस नदी में गोते भी लगा लिया करते थे | इसके लिए घर पहुँचने पर हमारी अच्छी – खासी धुनाई भी हो जाती थी | कक्षा में शुरु से ही मेधावी होने के कारण ‘मास्टरजी’ ने मुझे ही मॉनिटर