धीरे-धीरे अब समय आ गया था जब हर आँख में आँसू आ ही जाते हैं यह सरोज की विदाई की बेला थी। यूँ तो वह एक घर से निकलकर बाजू वाले घर में ही जा रही थी लेकिन फिर भी विदाई तो विदाई ही होती है। आज भले राम, माया और केवल राम की आँखें आँसुओं से भीगी जा रही थीं। भले ही ससुराल बाजू में ही हो पर फिर भी शादी के बाद बेटी का मायका तो छूट ही जाता है। वह पहले जैसी आज़ादी कहाँ मिल पाती है। सरोज ने जब अपने पिता को चुपके से चश्मे के