बेचैनी भरे इंतज़ार के लम्हों को समाप्त करते हुए मुन्ना लाल ने मुस्कुराते हुए कहा "गौरी जाओ भाई हलवा बना कर लाओ, सबका मुँह मीठा करवाओ।" यह सुनते ही सभी की ख़ामोशी मुस्कुराहट में बदल गई और चेहरों पर चमक भी आ गई। छोटे लाल भी कान लगाकर सुन रहा था। सबकी हाँ सुनकर उसका मन लंबी-लंबी उछालें मार रहा था; जैसे मानो पूनम की रात में सागर की लहरें मोटी-मोटी उछाल मार रही हों। मुन्ना और गौरी भी बहुत ख़ुश थे। बिना ढूँढे, बिना माथापच्ची किए, इतनी अच्छी सुकन्या घर बैठे ही मिल गई थी। बस कुछ ही समय