प्रेम गली अति साँकरी - 83

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83 ---- ============= अपनी बारी की प्रतीक्षा में चारों ओर का जायज़ा लेती मेरी आँखें वापिस लौटकर बार-बार उत्पल के चेहरे पर ठहर जातीं जिसका चेहरा क्या और सभी की तरह केवल आँखें खुली हुई थीं | उसकी उन उत्सुक आँखों को हर बार मैंने अपने ऊपर टिका हुआ ही पाया | मुझे लगा मैं कितनी दोगली थी, मैं देखूँ तो क्षम्य और वह देखे तो अक्षम्य ! गुनाह ! ये भला क्या बात हुई मैं भी न ! वास्तव में मुझे अपने ऊपर अजीब सी कोफ़्त हो आई | ऐसा होना चाहिए क्या? एक ही बात के लिए अगर