मैं और मेरे कृष्णा कृष्ण की दिवानी बांसुरी आज दिवाना बना रहीं हैं l कृष्णा की आश में वन उपवन सुरों से सजा रहीं हैं ll कुछ ज़ख्म सयाने हो गये हैं कि दर्द भी नहीं देते l सोए हुए बैचेन और बैखोफ अरमान फ़िर जगा रहीं हैं ll बेपन्हा बेइंतिहा प्यार में पागल और दिवानी होकर l प्रिये को रिझाने वो होठों से लग के दिल लगा रहीं हैं ll अनगिनत छेद ही छेद अंदर और बाहर होते हुए l फासला कम करने खुद को खुद के भीतर समा रहीं हैं ll फ़िज़ाओं में मदमस्त