संन्यास एपीसोड---2 किशोरी हैरान रह जाती कि इन के ऐसे कौन से दोस्त बन गये हैं, जो रोज किसी न किसी के यहाँ दावत होती है । उन की माँ भी हैरान थीं । कभी कभी उन्हें झिड़कती थी, “किशोरी! सारे दिन घर में रह कर तंग हो जाती है । तू उसे अपने साथ क्यों नहीं ले जाता?” “माँ, आजकल मैं दोस्तों में व्यस्त हूँ । बाद में कभी ले जाऊंगा, ” देवीदत्त उन से जान छुड़ाते हुए कहते । कभी कभी दस पंद्रह दिन में जब किशोरी को घुमाने भी ले जाते तो उसे लगता जैसे वह उसे