“ यह महान दृश्य है...आजादी की बेला, बरसों का स्वप्न, खुली हवा में सांस, औऱ उपर लहराता तिरंगा. सोचने में आता है कि फहराने वाले के मस्तिष्क में क्या चल रहा होगा?●●●वह जो नीचे खड़े हैं, तिरंगे को देख रहे हैं, नेहरू को देख रहे हैं। उनका दृश्य सीमित है. विशाल असलियत दूसरी ओर से दिखती है.क्योकि ऊंचे किले की प्राचीर पर खड़े होकर, दूर तक दिखता है. ये विशाल जनसमूह !! ये वोटर नही, कार्यकर्ता और समर्थक नही, मुग्ध श्रोता भी नही। उन्मादित गर्वीलों का जमावड़ा नहीं है, ये दीन हीन, आर्थिक- सामाजिक रूप से निचुड़ चुका राष्ट्र है.