उजाले की ओर ----संस्मरण ================== नमस्कार प्रिय मित्रो आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सब कुशल मंगल हैं, आनंदित हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव में ऊपर नीचे होकर एक सुनिश्चित, सुनियोजित रूप से भविष्य की रूपरेखा बनाते हुए हम लड़खड़ाने लगते हैं और धराशायी हो जाते हैं। ऐसा नहीं है, कभी संभल भी जाते हैं लेकिन अधिकांश रूप से जब जब लड़खड़ाते हैं तब नकारात्मकता में उतरने लगते हैं और एक बार नकारात्मक हुए कि हमारी ऊर्जा निचुड़ने लगती है और हम अशक्त और अशक्त होते जाते हैं । बस, यही वह समय है जब हमें संभलने की, चेतना की,