शकराल की कहानी - 17 - अंतिम भाग

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(17) फिर अचानक दोनों ही चौंक पड़े थे । कहीं दूर से घोड़े की हिनहिनाने की आवाज आई थी । राजेश पूरी तरह सतर्क भी हो गया था। घोड़े के हिनहिनाने की आवाज फिर सुनाई दी। इस बार राजेश ने दिशा का भी ज्ञान लगा लिया था । तुम यहीं ठहरो - राजेश ने कहा और उछल कर घोड़े की पीठ पर बैठने ही वाला था कि सलविया उसकी कमर थाम कर झूल गई । “यह क्या कर रही हो—–? राजेश ने झल्ला कर कहा । तुम मुझे अकेला नहीं छोड़ सकते - हम पैदल उसका पीछा न कर सकेंगे।