एक थी नचनिया--भाग(१४)

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श्यामा अब अपनी माँ के घर में रहने लगी तो पास पड़ोस वाले उसके बारें में तरह तरह की बातें करने लगे,कहने लगे कि " अभागन है जाने कहाँ की,देखो तो बेचारी के पूरे परिवार का नाश हो गया" तो वहीं कुछ औरतें कहती... " अभागन काहें की ,मनहूस और अपशगुनी है पूरे परिवार को लीलकर अब देखो राड़ बनकर अपनी माँ की छाती पर बैठी है,बाप को तो खा गई अब लगता है कि माँ को भी लीलकर दम लेगी..." बेचारी सुखिया, श्यामा की माँ लोगों के बातें सुनकर खून का घूँट पीकर रह जाती,आखिर वो लोगों से कहती