बात गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों की है... और तसवीर मधुशाला की। अजीब लगेगा आपको। मुझे भी लगा, जब मैंने अपने पिता को मधुशाला सुनते देखा। ●●उन्हें कविताओं का शौक था। दूर दूर कवि सम्मेलन सुनने जाते। घर पर भी सैंकड़ो कैसेट। अक्सर बजाए जाते। मेरे लिए सबसे असहनीय था- मधुशाला सुनना। समझ न आता कि मेरे पिता, जो अदरवाइज, बड़े बौद्धिक प्राणी हैं, भला "बेवड़ों की कविता" क्यो सुनते है। प्याला, हाला, मधुसाकी बाला.. उफ्फ!!मगर उनसे बोले कौन। और वो सुनते, रिपीट कर करके सुनते..हाथ पकड़ लज्जित साकी का, हाय नही जिसने खींचाव्यर्थ सुखा डाली जीवन कीउसने मधुमय मधुशाला●●शर्मिंदगी