अध्याय 220 साल बीत चुके हैंधरती एक बार फिर खिल उठी हैदुनिया में जो हाहाकार मचा हुआ था थम गया हैवसई नगर...... कोलेज-रुक जा रुक!!! आज तुझे जाने नहीं दुंगा निकाल मेरे पैसे मोटे!!! -सोरी यार अरविंद, मैंने तो आज पिज़्ज़ा और बर्गर खरीद लिए, कल लौटा दुंगा परोमिस!-चल कोई ना, लेकिन कम खाया कर वरना चलने लायक भी नहीं रहेगा |-(गुस्से में) तुम दोनों यहाँ पर हो मैं कब से तुम्हारा वैट कर रही थी पता भी है-चल ना अनु मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि इनके बिना ही चलते हैं -तुम दोनों चली जाओ मैं और मोटा