मुक्ति

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कड़ाके की ठंड में दोपहर से चलते-चलते ओंकार की बारात को नई नवेली दुल्हन के साथ ओंकार के गांव पहुंचने से पहले ही रात हो जाती है।दूल्हे ओंकार का पिता बाबूलाल दूल्हे दुल्हन की बैलगाड़ी खुद चला रहा था।दूसरे बैलगाड़ी वाले और बाराती ओंकार के पिता से कहते हैं "आगे जो गांव आने वाला है, उसको पार करने के बाद घना जंगल पड़ेगा और सबको पता है कि उस घने जंगल में लुटेरे यात्रियों को लूट लेते हैं और कड़ाके की ठंड शीत लहर कोहरे अंधेरी रात उबड़-खाबड़ रास्ते की वजह से बैलगाड़ियों को भी चलाने में बहुत मुश्किल आ