# *सुहागन की बिंदी* # *बाहर फेरीवाला आया हुआ था। कई तरह का सामान लेकर---बिंदिया, काँच की चूड़ियाँ, रबर बैण्ड, हेयर बैण्ड, कंघी, काँच के और भी बहुत सारे सामान थे। आस-पड़ोस की औरतें उसे घेर कर खड़ी हुई थीं।* *काफी देर तक बाबा गेट पर अपनी लाठी टेककर खड़े रहे। जैसे ही औरतों की भीड़ छँटी, बाबा अपनी लाठी टेकते हुए फेरी वाले के पास पहुँच गए और उस का सामान देखने लगे।* *शायद वे कुछ ढूँढ रहे थे। कभी सिर ऊँचा करके देखते, कभी नीचा। जो देखना चाह रहे थे, वह दिख नहीं रहा था।* *हैरान परेशान बाबा