चंपारण

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खूबसूरत, गहरा नीला रंग.. कपड़े रंगने के काम आता, मगर बंगाल- बिहार के किसानों के गले का हलाहल था। ●●एक बीघा जमीन में तीन काठी पर, नील उगाना जरूरी था। नील जहां लगती, वो जमीन बेकार हो जाती। सरकारी अफसर, ठेकेदारों के गुमाश्ते उसे अगली बार अच्छी जमीन पर उगवाते।खाने के लिए अनाज की खेती न हो पाती। नील को ठेकेदार, कौड़ियों के दाम ले जाते। ●●आसपास फैक्ट्री होती, जहाँ अर्क निकाला जाता, सुखाकर यूरोप भेजा जाता। किसान बदहाल, व्यापारी-सरकार मालामाल थे।ये सौ सालों से चल रहा था।तीनकठिया प्रथा किसान की धीमी, तयशुदा मौत थी। राजकुमार शुक्ला से देखा न