शाकुनपाॅंखी - 40 - आहत मन

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59. आहत मन जल्हण कालिन्दी तट पर रुके। अश्व को थोड़ी दूर पर उगे एक शहतूत के पेड़ से बाँध दिया। वस्त्र उतार कर स्नान के लिए नदी में उतर गए। स्नान किया। अर्यमा का अर्घ्य देकर निकले। तट पर ही बैठ गए। यमुना की लहरों को देखते रहे । लहरें उनके मन को उद्वेलित करने लगीं। जीवन अब लहरों की थपेड़ों में ही बीतना है। महाराज पृथ्वीराज भी नहीं रहे। शहाबुद्दीन ने उनकी आँखें निकलवा ही ली थी। महाराज पेट चाककर चल बसे। जल्हण राय पिथौरा दुर्ग को देखते रहे। कभी इस पर चाहमान नरेश का ध्वज लहराता था