शाकुनपाॅंखी - 32 - वह समाधिस्थ हो जाती

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46. वह समाधिस्थ हो जाती कान्यकुब्ज पतन के बाद राजकुमार हरिश्चन्द्र मुदई छोड़कर गोमती तट स्थित गढ़ी की ओर प्रस्थान कर गए। कारु दुःखी थी। शुभा ने प्राण छोड़ दिया था । संरक्षिका के बिना राजकुमार के साथ जाना उसने उचित नहीं समझा । शुभा ने जो सम्मान दिया था उसे अब गहड़वाल परिवेश में पाना कठिन था। वह मुदई में ही रुक गई। दो सप्ताह एक खंडहर में किसी प्रकार बिताया । वंशीधर कृष्ण की आराधना करती और चौबीस घण्टे में एक बार भोजन कर पड़ी रहती। तुरुष्कों का आतंक कम हुआ तो लोग इधर-उधर आने जाने लगे। एक