शाकुनपाॅंखी - 29 - आओ चलें

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41. आओ चलें कान्यकुब्ज को दूसरा काशी कहा जाता था। जयचन्द्र के वीरगति पाने की सूचना मिलते ही पूरे नगर में हाहाकार मच गया। 'माँ, यह संकट का समय है । मुदई की ओर निकल चलने का ही एक विकल्प है।' जाह्नवी जैसे अपनी चेतना खो बैठी हैं। उनकी ओर से कोई आवाज़ नहीं आई।'माँ', हरि ने माँ के कन्धे पर हाथ रखा।'समय बहुत कम है माँ। तनिक भी असावधानी हमें विपत्ति में डाल देगी।' 'ऐं.... वे कहाँ गए ? महाराज को सूचित करो न संकट है तो महाराज....।' जाह्नवी का विचारक्रम टूट चुका था। ऐसी आपदाओं में यह असामान्य