शाकुनपाॅंखी - 22 - पस्त न समझें

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30. पस्त न समझें बन्दीगृह का कपाट जोर से खुला। भृत्य उन कपाटों को धीरे से खोलते थे । जब शाह का कोई सिपहसालार कपाट खुलवाता तो जोर की आवाज़ होती । कपाट खुलने की आवाज़ से पृथ्वीराज को लगा कोई अधिकारी होगा। कोई नई विपत्ति, यही सोच वह मौन ही रहा। अब तो आँखें भी नहीं हैं। केवल ध्वनि सुनकर ही अनुमान लगा सकता है। पदचाप निकट आता गया । 'महाराज,' यह सम्बोधन सुनकर वह चौंक पड़ा। पूछ पड़ा,'कौन?"'मैं', प्रताप सिंह ने कहा।'देख रहे हो प्रताप ?''देख रहा हूँ महाराज ।''मैंने कितनी बार शाह के सिपहसालारों को बन्दी बना