मैं तो ओढ चुनरिया - 46

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  46 चाचाजी की शादी सुख शांति से निपट गई और लगे हाथ मेरा भाग्य भी लिखा गया । जिंदगी फिर से अपनी रफ्तार से चलने लगी थी । माँ भी अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी पर अब उनके सुर बदल गये थे । वे हर समय इस चिंता में रहती कि इतने बङे परिवार की मिलाई के इतने सारे कपङों का जुगाङ कैसे किया जाएगा । पिताजी तो पहले की तरह मस्त रहते पर चौबीस घंटे माँ चिंता में लीन रहती । हर आए गए के सामने एक ही बात । लङके के एक नानी , चार