शायरी - 14

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मन मैला तन मैला और काया कोढ़ी होयजिह्वा है एक डाकिनी तो भजन कहा से होयचलते चलते दिन मरा, जगते जगते रातआशा तृष्णा सब मरी, खाक हुआ विश्वासधरनी मरी कलेश से, पाप से मरा आकाशतूने प्रभू माया गढ़ी, या गढ़ दिया विनाश तूने मुझे छोड़ा तो इसमें तेरी क्या खता हैतुझे राह में सिर्फ पत्थर मिले मेरी बद्दुआ है गलती तेरी है नहीं मेरी है भरपूरतू तो अपने राह चल मैं चलता हूं दूर फिर वही नीद वही सपने वही रातें वही दिनतुम नही होते हो तो जन्नत भी सपना लगता है हम जमीन पर रहकर भी आसमानों पर नजर