अतीत के पन्ने - भाग 44

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फिर शाम का समय हो गया था नव्या दुल्हन बनी बैठी हुई थी ।कुछ देर बाद ही बारात आ गई।आलेख भी वहां पर मौजूद था।कुछ देर बाद ही वर वधू को पंडित जी ने बुलाया।वर माला होने के बाद ही कन्यादान के लिए आलेख को लेकर पिया मंडप पर पहुंच गई।आलेख की जिंदगी जैसे इस पल के लिए ही रूकी हुई थी।आलेख ने एक पिता का फर्ज अदा किया नव्या का हाथ शुभम के हाथों दे दिया।कन्यादान महादान कहते हैं एक पिता का जीवन तभी सार्थक होता है जब वो अपनी बेटी का कन्यादान करता है।नव्या मुस्कान लिए हंसती रही