अतीत के पन्ने - भाग 43

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आलेख ने कहा हां आज गुड़िया का अठारहवां सालगिरह है।।मुबारक हो मेरी लाडो!कैसी है तू!ये कहते हुए उसके आंखों से बहते हुए आंसु पोंछते हुए कहा पता नहीं क्यों आज फिर से जीने का दिल कर रहा है।छाया को गुजरे चार साल हो गए पर मैं अभी तक जिन्दा ही हु छोटी मां।ना जाने किसका आसरा है मुझे फिर से कोई आने वाला है इस हवेली में शायद।शाम की बहन अब टिफिन लेकर आती है।चाय तो मैं खुद ही बना लेता हूं छोटी मां।।कुछ देर बाद ही दरवाजे पर दस्तक हुई।मैं जल्दी से दरवाजा खोला तो सामने देखा जतिन अंकल