शाकुनपाॅंखी - 12 - डर किस बात का?

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19. डर किस बात का? पेशावर के अपने शिविर में शहाबुद्दीन चहलकदमी कर रहे हैं। पार्श्व में पहाड़ियों पर उगते सूर्य की किरणें सोना बरसा रही हैं। हवा तेज है, सुल्तान के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ । चोबदार ने प्रवेश कर आदाब किया, हुजूर एक फ़कीर .... ।'' ले आओ', सुल्तान के मुख से निकला। उनकी दृष्टि द्वार पर ही टिक गई। चोबदार के साथ फकीर । बाल बिल्कुल सफेद । चेहरे पर इत्मीनान की रौनक । चोगा साफ धवल । फ़कीर ने एक नज़र सुल्तान को देखा । चोबदार वहाँ से हट गया। 'सुल्तान, मैं भी गोर का