देर तक तालियां बजती रहीं। पूरा हॉल मानो श्रोताओं के हर्षोल्लास से गूंज उठा। एक अतिथि तो यहां तक कहते सुने गए कि आजकल के कार्यक्रम होते ही इतने नीरस और उबाऊ हैं कि श्रोताओं का तालियां बजाने का दिल ही नहीं करता। एक- आध ताली बजती भी है तो वो इस खुशी में बजती है कि चलो, बैठे तो सही। शायद यही कारण है कि कार्यक्रमों के संचालकों का तकिया कलाम ही ऐसा बन जाता है - "एक बार ज़ोर से करतल ध्वनि करके उत्साह वर्धन कीजिए"... वो इतनी बार ऐसा कहते हैं कि श्रोताओं को खीज होने लग