शाकुनपाॅंखी - 7 - समरसता की चिन्ता

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10. समरसता की चिन्ता कच्चे बाबा गंगा तट पर स्थित अपने छोटे से आश्रम में एक आसनी पर बैठे हैं। पारिजात शर्मा कन्धे पर उत्तरीय डाले आए। बाबा के सामने ही बैठ गए। उन्होंने बताया, “कान्यकुब्ज नरेश का राजसूय यज्ञ प्रारंभ हो गया है।''हूँ' बाबा के मुख से निकला। ‘अनेक सामन्त सेवा कार्य हेतु आ गए हैं । चाहमान नरेश पृथ्वीराज की एक मूर्ति द्वारपाल की जगह लगाई गई है।' पारिजात बताते रहे।बाबा जैसे चौंक पड़े हों, कहा, 'उचित नहीं किया कान्यकुब्ज नरेश ने। स्वेच्छा से सेवा कार्य करने की परम्परा है। मूर्ति लगाकर तो अपमानित करना हुआ । क्या