शाम का धुंधलका सा था। बिजली छत के एक कौने में मुंडेर पर सिमटी- सिकुड़ी बैठी थी कि चहकती हुई चमकी ऊपर आई।आते ही शुरू हो गई, बोली - तू अपनी साइकिल में ढंग से साफ - सफाई क्यों नहीं रखती? कभी तो तेल- ग्रीस कुछ लगाया कर। चेन जाम हुई पड़ी है। जंग खाई।- क्या हुआ? बिजली ने उसके इतने सारे उलाहने सुने तो धीमे से बोल पड़ी।चमकी बोली - अरे बीच सड़क पर एकदम से रुक गई साइकिल। मैंने ज़ोर से धकेल कर आगे बढ़ाने की कोशिश की पर टस से मस नहीं हुई, बल्कि चेन और उतर