द्वादश परम भागवतोंमें श्रीशिवजीका प्रमुख स्थान है। भगवान्के स्वभाव, प्रभाव, गुण, शील, माहात्म्य आदिके जाननेवालोंमें भी श्रीशिवजी अग्रगण्य हैं। भगवान्के नामके प्रभावको जैसा श्रीशिवजी जानते हैं, वैसा कोई जाननेवाला नहीं है। यथा—‘नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥’ भगवान् नीलकण्ठ श्रीशिवजीका हलाहलपान इस बातका साक्षी है।अमृतके लोभसे समुद्र-मन्थन किये जानेपर सर्वप्रथम कालकूट (महाविष) निकला, जो सब लोकोंको असह्य हो उठा। देवता और दैत्यतक उसकी झारसे झुलसने लगे। तब भगवान्का संकेत पाकर सबके सब मृत्युंजय श्रीशिवजीकी शरणमें गये और जाकर उन्होंने उनकी स्तुति की। करुणावरुणालय भगवान् शंकर इनका दुःख देखकर सतीजीसे बोले—‘देवि ! प्रजा एवं प्रजापति महान् संकटमें