अब तीनों राजमहल पहुँचकर पहले तो वैशाली के कक्ष में घुसे,इसके पश्चात कालवाची ने सभी का रुप बदला,तत्पश्चात सभी अपने अपने कक्ष की ओर चले गए,दूसरे दिन पुनः महाराज गिरिराज ने वैशाली को रात्रि के समय अपने कक्ष में बुलाया और अपने समीप बैठने को कहा... वैशाली महाराज गिरिराज के समीप बैठते हुए अत्यधिक भयभीत थी कि कहीं गिरिराज के समक्ष उसका ये भेद ना खुल जाएं कि वो एक पुरूष है स्त्री नहीं, ये सभी विचार वैशाली बने अचलराज के मस्तिष्क में आवागमन कर रहे थे तभी गिरिराज बोला..... "प्रिऐ! तुम कितनी सुन्दर हो,मैं तुम्हारे समीप आने हेतु कब